चंद माह पहले एक मार्मिक सच का सामना किया हम सबने. प्रकृति के ऐसे परिवर्तन जिसने धरा को अपनी को अपनी धुरी से हिला दिया. बहुत दिनो से सोंच मे था की इस शीर्षक पर कुछ लिखूं परंतु इसमे भावनाओं का इतना समावेश था की हाँथ काँप उठे. फिर भी लिखने की कोशिश की है आशा है आपको पसंद आएगी -
यूँ एक किनारे पत्थर पर
क्षितिज तक निगाह मे
अपना कोई बिछड़ा है
वो बैठा जिसकी राह मे.
कुछ दिन पहले सैलाब था
ज़मीन की गहरी थाह मे
अब रोज़ तूफान दम तोड़ते
रोने वालों की आह मे.
धुल गये जो निकले आँखों से
काली बदरी की छाह मे
वो छूट गया क्यूँ नही रहा
एक माँ की जकड़ी बाह मे.
सब बदल गया जो पहले था
यूँ जड़ से एक कराह मे
फिर क्यूँ वो कौतूहलवश
भागा जाता अपवाह मे.
अब नही है वो जो अपना था
छिप गया है गहरे स्याह मे
आधार बना इस सच्चाई को
हम खड़े हैं तेरी पनाह मे.
संबल देता सहराता
सुकून है उसकी फाह मे
यूँ भूल बिसारे वक़्त को
नये हर्फ लिखें उत्साह मे.
अनुराग पांडेय
यूँ एक किनारे पत्थर पर
क्षितिज तक निगाह मे
अपना कोई बिछड़ा है
वो बैठा जिसकी राह मे.
कुछ दिन पहले सैलाब था
ज़मीन की गहरी थाह मे
अब रोज़ तूफान दम तोड़ते
रोने वालों की आह मे.
धुल गये जो निकले आँखों से
काली बदरी की छाह मे
वो छूट गया क्यूँ नही रहा
एक माँ की जकड़ी बाह मे.
सब बदल गया जो पहले था
यूँ जड़ से एक कराह मे
फिर क्यूँ वो कौतूहलवश
भागा जाता अपवाह मे.
अब नही है वो जो अपना था
छिप गया है गहरे स्याह मे
आधार बना इस सच्चाई को
हम खड़े हैं तेरी पनाह मे.
संबल देता सहराता
सुकून है उसकी फाह मे
यूँ भूल बिसारे वक़्त को
नये हर्फ लिखें उत्साह मे.
अनुराग पांडेय