Thursday, March 29, 2012

पदवी तेरी

एक मित्र का स्थान जीवन मे सर्वोत्तम माना गया है| जो निस्वार्थ भाव से आपकी प्रसन्नता मे सम्मिलित हो, जो सेवार्थ भाव से दुख मे आपकी सहायता करे वही उत्तम मित्र है | मेल मिलाप विरह जीवन के अंग हैं | मित्र भी मिलते हैं, कुछ समय के लिए दूर होते हैं, पर उनका स्थान हृदय मे अद्वितीय रहता है | यह रचना समर्पित कर रहा हूँ ऐसे ही एक मित्र पर, जो कुछ प्रहर बाद जापान से विदा लेगा  -

क्यूँ व्यथित हृदय से विदा करूँ,
कर्तव्य मित्र का अदा करूँ|

आँखों मे न अश्रु का वास हो,
मुखमंडल पर उल्लास हो|

यश कीर्ति संग तेरे भ्रमण करें,
वैभव विद्या गृह रमण करें|

हर सुबह तेरी फलदायी हो,
यह सृष्टि तेरी अनुयायी हो|

तुम बनो उदाहरण जन जन के,
प्रिय रहो हमेशा कण कण  के|

प्रतिभा बहु आयाम विभाजित हो,
रिपु समर सदैव पराजित हों|

हे ईश विनती  यह मेरी सुने,
अपने प्रियजन मे तुझे चुने|

पदवी तेरी उत्तम गगन सी हो,
प्रगति तीव्र तेरी 'पवन' सी हो|

                                अनुराग पांडेय