Monday, July 18, 2011

चैतन्य सी जो गति होये

कण कण मे बस रहे श्री हरि की वंदना मे कुछ पंक्तियाँ अर्पित की हैं | एक भक्त की अभिलाषा है की वो प्रभु को मूर्त रूप मे देखे, उसकी इस आस को पंक्तियों मे बाँधने की कोशिश है आशा करता हूँ आपको पसंद आएगी | यह अवधी भाषा मे मेरा प्रथम प्रयास है -

तिनुक न जग की लाज करूँ
मन बैरागी होये |
जागत हों सो हरि दिखे
हरि ही दिखे जो सोये ||

सुमिर करत यों आस लगी
कबहूँ को दर्शन होये |
उई झाकिन आन्खिन धरत
उई निकसे जब रोए  ||

हृदय बसे मन प्राण बसें
हरि नाम स्वास से होये |
आठ पहर उई साथ चलत
मूरत दिखे न मोहे ||

भजञाम तिहारो काज करूँ
चैतन्य सी जो गति होये |
जीवित हों तो भक्ति तेरी
जीव वैकुंठ मे खोए ||

अब अँखियन के समक्ष प्रभु
साकार रूप जो होये |
हरिधाम मिले मोहे मोक्ष प्रभु
अरज करूँ कर जोए ||
                        अनुराग पांडेय