Wednesday, January 25, 2012

श्रेष्ठ धर्म

स्वामी विवेकानंद ने मनुष्यता की सेवा को सबसे बड़ा धर्म माना है उसी पर आधारित, गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर यह रचना आपके समक्ष रख रहा हूँ| ईश्वर की सबसे उत्कृष्ट रचना मनुष्य के लिए एक संदेश है की समस्त गुणों से सुसज्जित होने के उपरांत भी अन्भिग्योन की भाँति व्यहवार क्यूँ| कुछ प्रश्नोत्तरों के माध्यम से आप तक पहुँचाने की कोशिश है, उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आएगी -

हे मनुष्य तुम द्रुतगामी |
तो तुम्हारी लगाम क्या ?

जब निश्चय तुम्हारा दृढ़ अटल |
तो सोचना अंजाम क्या ?

हो उठे तुम्हारा हृदय उद्वेलित |
तो तुम्हे इत्मिनान क्या ?

तुम अधीश हो मन के |
तो मानना कोई फरमान क्या ?

तुम हो रचयिता हर पृष्ठ के |
तो तुम्हारा इम्तिहान क्या ?

जब शीर्ष तुम्हारा लक्ष्य सधा |
तो कोई और मकाम क्या ?

तुम ज्ञानी ग्रंथों के ज्ञाता |
तो सीखोगे कोई कलाम क्या ?

पर शत्रु तुम्हारा तुम स्वयं |
तो फिर ऐसा इंतकाम क्या ?

तुम अपनी गति के हो कारण |
तो औरों पर इल्ज़ाम क्या ?

श्रेष्ठ धर्म है मनुजता की सेवा |
तो जानोगे रहीम क्या और राम क्या ?

                                   अनुराग पांडेय

Friday, January 20, 2012

प्रेम और प्रबंध विवाह (हास्य)

अपने समस्त विवाहित, अविवाहित और अर्धविवाहित मित्रों के लिए कुछ पंक्तियाँ लिखीं हैं| यह समर्पित हैं आपके घरों मे निवास करने वाले सर्व शक्तिमान के ऊपर, जिनके सम्मुख हम नतमस्तक हैं| प्रेम विवाह और प्रबंध विवाह का ज़रा सा अंतर बताने की कोशिश की है, आशा है आपको पसंद आएगी -

आज एक ग़ूढ बात बतलता हूँ,
प्रेम और प्रबंध विवाह का अंतर समझाता हूँ|

प्रेम विवाह मे आप एक दूसरे को, काफ़ी अरसे से जानते हैं,
मेरी होने वाली संगिनी देवी का काली रूप है, यह भली भाँति मानते हैं|

साल दो साल का भरपूर प्रेम, फिर आप आज्ञाकारी बन जाते हैं,
अपनी होनेवाली के समस्त तांडवों के आगे आत्मसमर्पण कर जाते हैं|

फिर विवाह मात्र एक रस्म है, जो रिश्तेदारों के सामने मनती है,
एक दूसरे के सारे टोने टटके समझ, जिंदगी बड़े इत्मिनान से चलती है|

यह दुनिया भी अजीब है इसे, अच्छी अंडरस्टॅंडिंग का नाम देती है,
यह जान लो स्व आमंत्रित प्रकोप के अंडर शांतिपूर्वक स्टॅंडिंग ही काम देती है|

प्रबंध विवाह इससे अलग है, लोग इसके रीति रिवाज अलग बतातें हैं,
समझ तो नही आता, पर आजकल होनेवाले इसमे कॉर्टशिप पीरियड बिताते हैं|

कुछ अज्ञान उत्साहित हो सोचते हैं, इस वक़्त मे एक दूसरे को समझ लेना है,
अरे समझो प्रेम विवाह के ४ साल के सिलबस को, दो महीने मे निपटा कर इक्जाम देना है|

देर से सही आँखें खुल जाती हैं, प्रेम विवाह मे हमला आप सामने से पाते है,
देखा जाता है इसमे सारे ब्रह्मास्त्र, ज़्यादातर दूर संचार के माध्यम से आते हैं|

सोंचो की जो सामने नही है, फिर खून का घूँट पी कर मूक रह जाते हो,
साल दो साल सब रमणीय लगता है, पर उसके बाद आत्मसमर्पण कर जाते हो|

सब बातों का सार यही है, नाग लपेटे कैलाषी जब चरणो मे पड़ गये,
अपना जीवन ख़त्म समझना जब सर्व शक्तिमान के आगे तुम अकड़ गये|

                                                                                                  अनुराग पांडेय