आज बहुत समय पश्चात अपनी लेखनी को आगे बढ़ाया है, मानो जीवन की इस आपाधापी मे मेरी कलम मे जंग सा लगा दिया था | हर कार्य के लिए वक़्त था पर जो कार्य सबसे सुखद अनुभूति देता है वो कहीं पीछे छूट गया | आज जब सारा विश्व एक विषम परिस्थिति मे है, मानव की गति मानो अवरुद्ध सी हो गयी है, इस काल मे एक ऐसे व्यक्तित्व को आपके सामने लाने की कोशिश कर रहा हूँ जो हमारी आपकी रोज़ की ज़िंदगी का एक बहुत अहम हिस्सा है | इस प्रतिबंधित अवकाश मे मुझे आपको सबको उस अहम हिस्से को एक नये नज़रिए से देखने का अवसर प्राप्त हुआ | इसी नज़रिए को कुछ पंक्तियों मे पिरोया हैआशा करता हूँ आपको पसंद आएगा -
दिनभर तो लगी रहती है, कभी जताती नही |
न जाने कब उठती है, बेवज़ह किसी को उठाती नही |
खुद ही रोज़ थकती है, किसी को थकाती नही |
सबकी ज़िद्दे जुगाड़ती, अपनी ज़रूरत कभी बताती नही |
सबकी मित्र सी फिरती, किसी मे भेद लाती नही |
सबको रूठने का हक, खुद किसी से रूठ पाती नही |
स्वयं को सब पर खर्चती, खुद की कोई थाती नही |
सबके श्रम की चर्चा, वह मेहनत करते अघाती नही |
सबके सपनो को सहेजती, अपने सपने सजाती नही |
शायद सुबह की चिंता मे, खुद की पीठ टिकातीनही |
हर घर की कुछ ऐसी सी कहानी, बाहर से नज़र आती नही |
घर पर हैं, तो इस किरदार की कीमत आँकी जाती नही |
कितने ही पर्यायों से सज्जित, मैं को कभी दिखाती नही |
वह लक्ष्मी शोभा स्वामिनी, यूँही गृह की बन जाती नही |
अनुराग पांडेय
दिनभर तो लगी रहती है, कभी जताती नही |
न जाने कब उठती है, बेवज़ह किसी को उठाती नही |
खुद ही रोज़ थकती है, किसी को थकाती नही |
सबकी ज़िद्दे जुगाड़ती, अपनी ज़रूरत कभी बताती नही |
सबकी मित्र सी फिरती, किसी मे भेद लाती नही |
सबको रूठने का हक, खुद किसी से रूठ पाती नही |
स्वयं को सब पर खर्चती, खुद की कोई थाती नही |
सबके श्रम की चर्चा, वह मेहनत करते अघाती नही |
सबके सपनो को सहेजती, अपने सपने सजाती नही |
शायद सुबह की चिंता मे, खुद की पीठ टिकातीनही |
हर घर की कुछ ऐसी सी कहानी, बाहर से नज़र आती नही |
घर पर हैं, तो इस किरदार की कीमत आँकी जाती नही |
कितने ही पर्यायों से सज्जित, मैं को कभी दिखाती नही |
वह लक्ष्मी शोभा स्वामिनी, यूँही गृह की बन जाती नही |
अनुराग पांडेय