कण कण मे बस रहे श्री हरि की वंदना मे कुछ पंक्तियाँ अर्पित की हैं | एक भक्त की अभिलाषा है की वो प्रभु को मूर्त रूप मे देखे, उसकी इस आस को पंक्तियों मे बाँधने की कोशिश है आशा करता हूँ आपको पसंद आएगी | यह अवधी भाषा मे मेरा प्रथम प्रयास है -
तिनुक न जग की लाज करूँ
मन बैरागी होये |
जागत हों सो हरि दिखे
हरि ही दिखे जो सोये ||
सुमिर करत यों आस लगी
कबहूँ को दर्शन होये |
उई झाकिन आन्खिन धरत
उई निकसे जब रोए ||
हृदय बसे मन प्राण बसें
हरि नाम स्वास से होये |
आठ पहर उई साथ चलत
मूरत दिखे न मोहे ||
भजञाम तिहारो काज करूँ
चैतन्य सी जो गति होये |
जीवित हों तो भक्ति तेरी
जीव वैकुंठ मे खोए ||
अब अँखियन के समक्ष प्रभु
साकार रूप जो होये |
हरिधाम मिले मोहे मोक्ष प्रभु
अरज करूँ कर जोए ||
अनुराग पांडेय
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