हर एक खत पर उनके हमने अश्क बहाएँ हैं
बाद मुद्दत के वो हमसे मिलने आएँ हैं |
अब जब वक़्त है हम उनसे रूबरू हैं
वोही अश्क मेरे चेहरे पर अल्फ़ाज़ बन उभर आएँ हैं |
हर्फ ए रुखसार पर अल्फ़ाज़ कुछ यूँ हैं
अक्स उनके मेरे दीद मे मानिंद मोम से पिघलाएँ हैं |
तुम बेफ़िक्र ही सही और देर से आते
हमारी मजबूरी खुदा से चंद साँसे जो उधार लाएँ हैं |
खबर उनको भी है लम्हे का मेहमान ये इश्क़ है
वजह फ़िक्र ए ज़िक्र मेरे दर पर बे-नक़ाब नही आएँ हैं |
ज़न्नत नसीब उनको जो खुदा मे खोते हैं
तुम जैसे संगदिल ही आशिक़ों के खुदा कहलाएँ हैं |
अनुराग पांडेय
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