स्वामी विवेकानंद ने मनुष्यता की सेवा को सबसे बड़ा धर्म माना है उसी पर आधारित, गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर यह रचना आपके समक्ष रख रहा हूँ| ईश्वर की सबसे उत्कृष्ट रचना मनुष्य के लिए एक संदेश है की समस्त गुणों से सुसज्जित होने के उपरांत भी अन्भिग्योन की भाँति व्यहवार क्यूँ| कुछ प्रश्नोत्तरों के माध्यम से आप तक पहुँचाने की कोशिश है, उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आएगी -
हे मनुष्य तुम द्रुतगामी |
तो तुम्हारी लगाम क्या ?
जब निश्चय तुम्हारा दृढ़ अटल |
तो सोचना अंजाम क्या ?
हो उठे तुम्हारा हृदय उद्वेलित |
तो तुम्हे इत्मिनान क्या ?
तुम अधीश हो मन के |
तो मानना कोई फरमान क्या ?
तुम हो रचयिता हर पृष्ठ के |
तो तुम्हारा इम्तिहान क्या ?
जब शीर्ष तुम्हारा लक्ष्य सधा |
तो कोई और मकाम क्या ?
तुम ज्ञानी ग्रंथों के ज्ञाता |
तो सीखोगे कोई कलाम क्या ?
पर शत्रु तुम्हारा तुम स्वयं |
तो फिर ऐसा इंतकाम क्या ?
तुम अपनी गति के हो कारण |
तो औरों पर इल्ज़ाम क्या ?
श्रेष्ठ धर्म है मनुजता की सेवा |
तो जानोगे रहीम क्या और राम क्या ?
अनुराग पांडेय
हे मनुष्य तुम द्रुतगामी |
तो तुम्हारी लगाम क्या ?
जब निश्चय तुम्हारा दृढ़ अटल |
तो सोचना अंजाम क्या ?
हो उठे तुम्हारा हृदय उद्वेलित |
तो तुम्हे इत्मिनान क्या ?
तुम अधीश हो मन के |
तो मानना कोई फरमान क्या ?
तुम हो रचयिता हर पृष्ठ के |
तो तुम्हारा इम्तिहान क्या ?
जब शीर्ष तुम्हारा लक्ष्य सधा |
तो कोई और मकाम क्या ?
तुम ज्ञानी ग्रंथों के ज्ञाता |
तो सीखोगे कोई कलाम क्या ?
पर शत्रु तुम्हारा तुम स्वयं |
तो फिर ऐसा इंतकाम क्या ?
तुम अपनी गति के हो कारण |
तो औरों पर इल्ज़ाम क्या ?
श्रेष्ठ धर्म है मनुजता की सेवा |
तो जानोगे रहीम क्या और राम क्या ?
अनुराग पांडेय
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