एक माता के लिए पुत्र हमेशा नासमझ और अज्ञान ही रहता है| वो हमेशा अपने पुत्र को छोटा ही मानती है चाहे उसकी उम्र कुछ भी हो| एक पुत्र जब माता की गोद से उतर कर इस जगत मे प्रवेश करने को होता है, वो छण एक माता के लिए बड़ा कष्टदायक होता है| यहाँ एक पुत्र माता से अनुमति ले रहा है अपने जीवन के संसाधन स्वयं जोड़ने की| एक पुत्र के आग्रह को कुछ पंक्तियों मे बाँधा है आशा है आपको पसंद आएगा -
माँ अब मैं बड़ा होना चाहता हूँ,
अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता हूँ|
मुझे अपने आँचल की छाँव से बाहर निकालो,
इस जग की तपती रेत पर तो डालो|
माना की मैं प्यादा और यह महासमर है,
चलकर जानूंगा क्या महारथियों की डगर है|
मैं कोमल हूँ पर वक़्त की धूप मे सिकूंगा,
अपनी कीमत जानूंगा जब बाज़ार मे खुद बिकूंगा|
मैं ग़लती का एहसास होना भी नही जानता हूँ,
सबसे बड़ी सज़ा अब तक तेरा आँखें तरेरना मानता हूँ|
मैं भी अपनी ग़लतियों से सीख लेना चाहता हूँ,
माँ मैं अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता हूँ|
अब तो मैं अंधेरों से भी नही घबराता हूँ,
अपरिचित आहट पर खुद को तेरे पीछे नही छुपाता हूँ|
रातों मे डरकर तुझे आवाज़ भी नही देता हूँ,
डरा सहमा सही अंधेरे से लड़कर सो लेता हूँ|
तू चाहे ना माने मेरा अहम मुझे ललकारता है,
जीवन य़ज्ञ मे मेरी आहुति को पुकारता है|
व्यर्थ चिंता करती है मुझपर विश्वास तो कर,
अपने आशीष का हांथ मेरे ऊपर तो धर|
मेरी ख्याति तुझसे, तुझे अपनी पहचान देना चाहता हूँ,
माँ मैं अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता हूँ|
अनुराग पांडेय
माँ अब मैं बड़ा होना चाहता हूँ,
अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता हूँ|
मुझे अपने आँचल की छाँव से बाहर निकालो,
इस जग की तपती रेत पर तो डालो|
माना की मैं प्यादा और यह महासमर है,
चलकर जानूंगा क्या महारथियों की डगर है|
मैं कोमल हूँ पर वक़्त की धूप मे सिकूंगा,
अपनी कीमत जानूंगा जब बाज़ार मे खुद बिकूंगा|
मैं ग़लती का एहसास होना भी नही जानता हूँ,
सबसे बड़ी सज़ा अब तक तेरा आँखें तरेरना मानता हूँ|
मैं भी अपनी ग़लतियों से सीख लेना चाहता हूँ,
माँ मैं अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता हूँ|
अब तो मैं अंधेरों से भी नही घबराता हूँ,
अपरिचित आहट पर खुद को तेरे पीछे नही छुपाता हूँ|
रातों मे डरकर तुझे आवाज़ भी नही देता हूँ,
डरा सहमा सही अंधेरे से लड़कर सो लेता हूँ|
तू चाहे ना माने मेरा अहम मुझे ललकारता है,
जीवन य़ज्ञ मे मेरी आहुति को पुकारता है|
व्यर्थ चिंता करती है मुझपर विश्वास तो कर,
अपने आशीष का हांथ मेरे ऊपर तो धर|
मेरी ख्याति तुझसे, तुझे अपनी पहचान देना चाहता हूँ,
माँ मैं अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता हूँ|
अनुराग पांडेय