Friday, February 24, 2012

आग्रह

एक माता के लिए पुत्र हमेशा नासमझ और अज्ञान ही रहता है| वो हमेशा अपने पुत्र को छोटा ही मानती है चाहे उसकी उम्र कुछ भी हो| एक पुत्र जब माता की गोद से उतर कर इस जगत मे प्रवेश करने को होता है, वो छण एक माता के लिए बड़ा कष्टदायक होता है| यहाँ एक पुत्र माता से अनुमति ले रहा है अपने जीवन के संसाधन स्वयं जोड़ने की|  एक पुत्र के आग्रह को कुछ पंक्तियों मे बाँधा है आशा है आपको पसंद आएगा -

माँ अब मैं बड़ा होना चाहता हूँ,
अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता हूँ|

मुझे अपने आँचल की छाँव से बाहर निकालो,
इस जग की तपती रेत पर तो डालो|

माना की मैं प्यादा और यह महासमर है,
चलकर जानूंगा क्या महारथियों की डगर है|

मैं कोमल हूँ पर वक़्त की धूप मे सिकूंगा,
अपनी कीमत जानूंगा जब बाज़ार मे खुद बिकूंगा|

मैं ग़लती का एहसास होना भी नही जानता हूँ,
सबसे बड़ी सज़ा अब तक तेरा आँखें तरेरना मानता हूँ|

मैं भी अपनी ग़लतियों से सीख लेना चाहता हूँ,
माँ मैं अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता हूँ|

अब तो मैं अंधेरों से भी नही घबराता हूँ,
अपरिचित आहट पर खुद को तेरे पीछे नही छुपाता हूँ|

रातों मे डरकर तुझे आवाज़ भी नही देता हूँ,
डरा सहमा सही अंधेरे से लड़कर सो लेता हूँ|

तू चाहे ना माने मेरा अहम मुझे ललकारता है,
जीवन य़ज्ञ मे मेरी आहुति को पुकारता है|

व्यर्थ चिंता करती है मुझपर विश्वास तो कर,
अपने आशीष का हांथ मेरे ऊपर तो धर|

मेरी ख्याति तुझसे, तुझे अपनी पहचान देना चाहता हूँ,
माँ मैं अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता हूँ|

                                                         अनुराग पांडेय

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