Friday, February 17, 2012

जब सुध थी

समस्त योनियों मे मनुष्य योनि को सर्वोत्तम बोला गया है| उत्तमता के साथ लघुता का होना अनिवार्य है| मनुष्य योनि मे ही जीव अपने मोक्ष का मार्ग सिद्ध कर सकता है, इस जीवन मृत्यु के चक्र से बाहर आ सकता है| धर्म जो भी हो, मार्ग सभी का एक ही गंतव्य को ले जाता है, आवश्यक है की अपने अहम को त्याग कर उपासना के मार्ग को पकड़ें| इसी सत्य को लिखने की कोशिश की है, आशा है आपको पसंद आएगी -

तन पर सिर्फ़ एक वस्त्र शेष,
जलने को कुछ मन लकड़ी|
याद हरि तब आए तुझे,
जब कंचन काया तेरी अकड़ी|

जब सुध थी हरि सुध न रही,
अब सुध बिसरी हरि याद आए|
जीवन भर एक मैं मे रहे,
वो मैं छूटा तब घबराए|

किस मद मे तुम थे इतराते,
नश्वर जग की नश्वर चीज़ों मे|
कण कण मे हैं व्याप्त हरि,
हर तत्व, तत्व के बीजों मे|

हरि का हर से प्रेम सत्य है,
हर हरि से क्यूँ ना प्रेम करे|
जिन बंधन मे तुम लिप्त सदा,
मुक्ति मार्ग है भज हरे हरे|

हरि स्वरूप हैं अलग अलग,
जप तप के हैं मार्ग अनेक|
सब मिलते एक ही मे जाकर,
गंतव्य सभी का मात्र एक|

चंदन वंदन न ही सही,
मन मे कटुता तो मत पालो|
आडंबर से हरें न हरि,
एक तुलसी दल से हर डालो|

                     अनुराग पांडेय

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