Friday, August 27, 2010

अतीत के पन्ने

आज फिर अतीत के पन्नो को हमने पलट कर देखा है ,
वो एक रुपये की चाय
और आठ आने के समोसे
वो कपड़े के झोले
और कागज के लिफाफे
वो घड़े मे रखा पानी
और पानी के बताशे
वो गली मोहल्ले मे बेबाकी के हुल्लड़,
और सोंधी मीठी दही के भरे से कुल्लड़.
मिट्टी से बने थे, मिट्टी मे फेका है,
आज फिर अतीत के पन्नो को हमने पलट  कर देखा है .-२

वो बुजुर्गों की शतरंज
और बुढ़िया के बाल
वो बदी की पतंगबाज़ी
और कमीज़ की बड़ी नाप
वो टेसू का पीला रंग
और कालिख का साँप
वो दाँतों मे खाड़िया दबाकर फिर माँ से छुपाना
और चार आने चुराकर छुपकर कॅमपॅट खाना.
वो गलियाँ अलग थीं जहाँ अपना बचपन महका है
आज फिर अतीत के पन्नो को हमने पलट  कर देखा है .-२

गर गौर से देखें
उन पन्नो की लिखावट अब मिट रही है
जिंदगी है छोटे दायरे मैं सिमट रही है
गलियाँ सुनसान
मोहल्लों मैं सन्नाटा है
सर्दी की दोपहरों मैं भी सिर्फ़
राहगीर ही नज़र आता है
आज नही होती वो बैठक, वो अलाव जिसमे मूँगफली फोड़ खाते थे,
ना दिखती है वो सनकी बुढ़िया, जिसे पगली दादी चिढ़ाते थे.
ये माहौल ही अलग है, हर ठिठोली की सीमा रेखा है,
आज फिर वर्तमान को हमने अतीत से तौल कर देखा है. -२

                                                                             अनुराग पांडेय

6 comments:

  1. Bahut khoob! Jin aadaton ko hum pahle ganwar samajhte the vo ab "nostalgic" lagti hain

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  2. मिट्टी से बने थे, मिट्टी मे फेका है,
    आज फिर अतीत के पन्नो को हमने पलट कर देखा है .-२

    kya khoob likha hai anurag! kamaal hai.
    maaf keejiyega, yeh do panktiyon ke baad fir aage dil nahin laga.

    i took a break, thori vivechana ki, aur fir aage badha. aaj ke zamaane mein mein agar itna gehre tak asr karne wala kuch padhne ko mil jaaye, to hriday prasann ho jata hai.

    "gulzari" tewar hain bhai iss mein!!
    god bless you. aisa hi accha likhte raho

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  3. ये कविता तो अतीत में पहुंचा देती है, पता ही नहीं चला कब छोटे से बडे हो गये, अच्छी कविता लेकिन थोडा सा दुखी भी करती है। इसे पढकर ऐसा लगा जैसे बहुत कुछ पीछे छूट गया हो।

    गीत के शब्दों में, ऐसा लगता है कि जैसे कोई ट्रेन छूटी जा रही हो। गीत, जब वी मेट वाली। :)

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  4. Reading this in office where lot of other guys are trying to work...i was afraid ki kahin "main kahin sab ke saamne ro na padun yeh dar lag raha hai"!!!
    you have pen'ed down things beautifully!!!

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