Friday, September 17, 2010

शरण तेरी

तू कुलीन,
मैं मलिन सही.
तू निःस्वार्थ,
मैं स्वार्थी सही.
तू निष्काम,
मैं कामी सही.
तू निर्लोभ
मैं लोभी सही.

पर तेरी ही रचना का तो अंग हूँ,
इसलिए,
अपने जैसे अन्य उदाहरणों के संग हूँ.
मैं अविलंब तेरी शरण मैं आ जाऊँगा,
जब तेरे जैसा,
तेरी रचना मे,
कोई और उदाहरण पा जाऊँगा.

                                 अनुराग पांडेय



3 comments:

  1. Main shayad isi condoition se guzar raha hoon...dhoond raha hoon "tere jaisa", "Koi aur udharan"..jo mujhe tujhse milwayega, koi aur roop lekar "vartmaan" main aayega!!!

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  2. Pandeyji, it's again a good piece of work.

    However, the philosophy, the message it connotes may lead to induce laziness,lust, selfishness, greediness, self righteousness in some individuals.

    काम क्रोध और लोभ मोह को इश्वर की रचना का नाम न दो,
    हासिल करलो जीत इनपे, फितरत को तुम बद-नाम न दो .

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  3. प्रेम, आवेश, क्रोध थे तीन मुख मेरे
    किंतु पूछा मेने इक दिन खुद से की बता तू कौन?
    निशब्द निस्तब्ध एक लहर उठी तब मनमे
    वो कौन गया आकर इक क्षण को
    छू कर सारे तार अंत रंग के
    नही पता वो दायरा मेने बनाया था या तोड़ दिया था....

    jis "tu" ki aap baat kah rahe hain vo to "mujh mei" hi hai......

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