Tuesday, September 28, 2010

मेरे सपनो मे वो बात नही होती

अभाव के दिन ही सही थे,
मैं मेरे दोस्त सब वहीं थे,
पड़ोसी के अमरूद तोड़ कर खाते थे,
कुछ मीठे सबमे बट जाते थे,
उन दाँतों के निशानो की कोई जात नही होती,
आज मेरे सपनों मे वो बात नही होती - २

दो जोड़ी मे पूरा साल कटता था,
भाइयों मे तब भी सामान बँटता था,
बड़े को कभी ज़्यादा मिल जाता था,
यह देख छोटा रो जाता था,
उस बँटवारे मे वैर की कोई बाँट नही होती,
आज मेरे सपनो मे वो बात नही होती - २

कुटिलता तब भी मन मे पलती थी,
पर पंचतंत्र की कहानियाँ जहन मे चलती थी,
ग़लत पर यूँ पछतावा होता था,
दुख़ पर गैरों के मन खुद रोता था,
इन आँखों से अब आँसुओं की बरसात नही होती,
आज मेरे सपनों मे वो बात नही होती - २

हम अब भी वहीं हैं,
पर अब मेरे दोस्त नहीं हैं,
हमने खुद यह बंधन काटे हैं,
दाँतों के निशान चार भागों मैं बाँटें हैं,
अब सिर्फ़ रात के अंधेरों से मुलाकात है होती,
आज मेरे सपनों मे वो बात नही होती - २

डर लगता है हर आहट पर,
शक होता है अपनों की चाहत पर,
कोसों दूर सी सुबह लगती है,
आँखें हैं यूँ अपलक जगती हैं,
चाहता हूँ हो पलकें भारी, ऐसी कोई रात नही होती,
आज मेरे सपनों मे वो बात नही होती - २

                                                    अनुराग पाँडेय

12 comments:

  1. Too good sir..it gave goosebumps..

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  2. बहुत शानदार कविता लिखी है, पांडे जी !!
    बचपन के दिन आखों के सामने आ गये.
    वर्तमान का बहुत अच्छा प्रति चित्रण किया है.
    अतिउत्तम
    .....
    ऐसे ही लिखते रहो !!

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  3. Another piece of art, read your poem…closed my eyes and traveled back in time via time machine. And agree with Ashu about getting “Goosebumps” and Lucky about such a nice “Prati Chitran” of present.

    In fact let me share a story which if not directly related to poem written above can be used as motivation for writing another one –

    “As you grow older to college, you still are a lot like your friends. But ten years later and you realize you are unique. What you want, what you believe in, what makes you feel, may be different from even the people closest to you. This can create conflict as your goals may not match with others. . And you may drop some of them. Basketball captains in college invariably stop playing basketball by the time they have their second child. They give up something that meant so much to them. They do it for their family. But in doing that, the spark dies. Never, ever make that compromise. Love yourself first, and then others.”

    Best Regards,
    Ambuj

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  4. "हमने खुद यह बंधन काटे हैं,
    दाँतों के निशान चार भागों मैं बाँटें हैं."
    Kya baat hai Pandeyji, bahut khoob!!!

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  5. nice poem sir jee!! really touching!!
    mind blowing.. mazaa aa gaya padh kar ...

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  6. एटलस की साईकल पर अब उन रास्तो पे मुलाकात नही होती,
    इन ए.सी. कमरो मै वो गर्मी की छुट्टी बाली बात नही होती,
    और पैसे मिला के खरीदे जाने बाले समोसो के दिनो को तो भूल जाओ,
    आज मेरे सपनो मे वो बात नही होती....

    Pandey ji asusual priceless creation from you...

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