Tuesday, October 19, 2010

स्ट्रिक्ट मास्टर की व्यथा (व्यंग)

यह बारहवीं के दौरान एक चलन था की ज़्यादा सख़्त अध्यापक को शिश्य आड़े हान्थ लेते थे.
इसे यूँ कहूँ की आए दिन ऐसी ख़बरे अख़बारों मे आती थी. कोशिश की है उस व्यथा का चित्रण करने की. यह मेरी कलम की पहली रचना थी. पसंद आए तो लिखिएगा.


बर्रा के चौराहे पर देखा एक दृश्य
एक मास्टर का था वो ह्रिश्य
तन पर थी एक लंगोटी, गायब से सिर के बाल
जगह जगह कटी थी उसके शरीर की खाल
बह रहा था खून था हान्थ से दाबे
वहीं सड़क के किनारे पड़ी थी
एक टूटी साइकल कुछ बिखरी किताबें.

उसे घेरे कुछ लड़के खड़े थे अभद्र
कुछ लगते थे चंडाल,
कुछ लगते थे वीरभद्र
कुछ के हान्थो मे थी हाकी,
कुछ हान्थो मे थे डंडे,
इसमे कोई शक नही
सब उसी के स्कूल के थे मुस्टंडे

चौराहे के इर्द गिर्द काफ़ी भीड़ जमा थी
कुछ के लिए था लुफ्त का नज़ारा
कुछ के लिए गमगीन शाम की शमा थी
ना था किसी मे इतना साहस
वो उन कालदूतों को टोक पाता
उनके बढ़ते हुए हान्थो को
बीच मे ही रोक पाता.

तभी उसकी निगाह ने भीड़ का किया कातर दौड़ा
उसी समय किसी लड़के ने एक व्यंग छोड़ा
क्यूँ बे कहाँ गयी तेरी वो चतुराई
स्कूल मैं तो बहुत नक्शे झाड़ते थे
हम लोगों की कॉपी किताबें बे झिझक फाड़ते थे
अब चलाओ यहाँ अपना वो डंडा
हमे ऐसे देख कर पड़ गया जोश ठंडा.

पिट गया वो टूट गयी हड्डियाँ
ना था कोई साथ मे,
अकेले ही बना रहा था
अपनी बिखरी किताबों की गॅडीयान
सोंच रहा था क्या होगा इस देश का
जब उसका भविष्‍य होगा दानव रूपी भेष का.

कि अब वी श्रीमान मलहम लगाकर
अपने घावों की गहराई आँकतें हैं
उधर वो लड़के अपने दोस्तों मे
अपनी वीरता के कारनामे हांकते हैं

अब साला अगर दोबारा लेगा पंगा
तो इसबार तो छोड़ दी थी लंगोटी
अगली बार कर देंगे नंगा...

अंत मे इतना कहना चाहूँगा
यह ना कोई हास्य व्यंगपूर्ण कथा है
यह तो आजकल के स्ट्रिक्ट मास्टर की व्यथा है - २

                                                        अनुराग पांडेय

4 comments:

  1. hahha... mast hai.. pilu wala jyada mast tha... aur voh tumne pahle sunaya bhi tha school mein.. :D

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  2. sahi hai guru ji...
    apne bhatt saab ke saath hua kya kabhi aisa ???

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  3. Bahut Badhiya Pandeyji....
    Yeh toh dabangg chattroo ki kartootoo ka bahut accha varnan hai...

    Lage Rahoo....

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  4. pata nahin kyon..
    main vidyarthiyon ki taraf hoon.

    aisa karne ka sapna sochte the. kabhi himmat nahin hui. par kavita ke zariye, gubaar nikal gaye. :))

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