मनुष्य के जीवन के दो पहलू हैं, सुख और दुख़. दोनो पहलुओं मे बदलती मानसिकता का चित्रण करने की कोशिश है यह रचना. प्रभु के प्रति आस्था और अभक्ति दोनो भावों को दिखाती है यह. आशा है आपको पसंद आयेगी.
सुखी था धनी था तब देखा एक सपना
एक पथ था कॅंट युक्त पर तू तो था अपना,
उस पथ पर दो पग चिन्ह थे बने
जाती हुई दो धूमिल कयाओं के पैर रक्त से सने
बगल मे था मेरे देता मुझे सहारा
जब पार हुआ पथ वो संसार लगा प्यारा
अब जीवन की गति कुछ ऐसी है रुकी
बन गया हूँ निर्धन रोगी और दुखी
अब देखता हूँ क्या मैं,
पथ पर एक ही पग चिन्ह हैं बने
जाती हुई एक ही काया के पैर रक्त से सने
अब जब कष्टों ने है आ मुझको घेरा
तू भी सुख के साथ साथ छोड़ गया मेरा.
जब अंत हुआ सपना, एक प्रकाश पुंज आया
वो "तू" था उसमे तुझको मैने पाया
करुणामयी हान्थ मुझपर नेह से फेरा
बोले होगा अवश्य दूर यह कष्ट के अंधेरा
जब कष्टों के बादल हैं तुमको घेरे
वो पगचिन्ह बने हैं मुझसे वो काया है मेरी
तुम और कहीं नही हो पर गोद मे हो मेरी.
अपने प्रश्नो की दुनिया मैं मुझको क्यूँ लाते हो
मैं हर प्रश्न का उत्तर हूँ मेरी शरण मैं आओ
भगवान से हमेशा चाहा है कभी भगवान को भी चाहो.
अनुराग पांडेय
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