Thursday, January 6, 2011

मेहनत को मेरी

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ एक नयी शुरुआत की कोशिश है.
यह हर तीन पंक्तियाँ आपसे कुछ कहने की इक्च्छा रखती हैं. आशा है आपको पसंद
आएँगी.

मेहनत को मेरी यूँ जाया ना करो
उन पत्थरों को मत निकालो
जो पानी मुहाने पर लाए हैं.

कमीज़ों की तारीफ सही है
पर गिरहबानो मैं भी झाँको.
अंदर जिसने कई जाहिल छुपाए हैं.

उन सूरतों को मत सराहो,
जिसकी सीरत ही खाक हो.
इस उजाले मैं कई स्याह दिल समाएँ हैं.

बयारें बहती है बहुत
पर उस महक को पहचानो.
साँसों से उतरकर जिसने कदम लड़खड़ाए हैं.

उस सोंच को पालो
जो तुम्हारी चादर मैं उघारी न हो
ना आसरा दो उसे जिससे चादर रुमाल नज़र आए हैं.

सब कुछ भुला देना
दीवानगी बुरी नही बिल्कुल
इश्क़ और ईश्वर दीवानों को ही मिल पाए हैं.

                                                       अनुराग पांडेय

2 comments:

  1. bahut badhiya rachna bandhu...nan jaane kyon ise padh ke mujhe Bashir badr saab kee yaad aa gaye

    "Ujaale apni yaadon ke humare sath rahne do
    na jane kis gali main zindagi ki sham ho jaye"

    /Ambuj

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  2. बहुत सुन्दर रचना, अनुराग..
    ये तीन पंक्तियों का अनमोल संकलन हे |

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